लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए
यूँ याद तिरी शब भर सीने में सुलगती है
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सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
शाम आँखों में आँख पानी में
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना
अब तो अँगारों के लब चूम के सो जाएँगे
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
जब सहर चुप हो हँसा लो हम को
मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न की
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
मुख़ालिफ़त से मिरी शख़्सियत सँवरती है
ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में