मंदिर गए मस्जिद गए पीरों फ़क़ीरों से मिले
इक उस को पाने के लिए क्या क्या किया क्या क्या हुआ
Mir Taqi Mir
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Gulzar
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बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का
हयात आज भी कनीज़ है हुज़ूर-ए-जब्र में
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
यारो नए मौसम ने ये एहसान किए हैं
ये ज़ाफ़रानी पुलओवर उसी का हिस्सा है
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे
तुम अभी शहर में क्या नए आए हो
किसी की याद में पलकें ज़रा भिगो लेते
कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते