उस की आँखों को ग़ौर से देखो
मंदिरों में चराग़ जलते हैं
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जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
वो इंतिज़ार की चौखट पे सो गया होगा
मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ
मैं यूँ भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न की
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा
दिन में परियों की कोई कहानी न सुन
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता
हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में
मेरे सीने पर वो सर रक्खे हुए सोता रहा
यारो नए मौसम ने ये एहसान किए हैं
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली