उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है
कोई फूल लाख क़रीब हो कभी मैं ने उस को छुआ नहीं
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दिल में इक तस्वीर छुपी थी आन बसी है आँखों में
कभी यूँ भी आ मिरी आँख में कि मिरी नज़र को ख़बर न हो
बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाम
भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा
दादा बड़े भोले थे सब से यही कहते थे
भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
उस की आँखों को ग़ौर से देखो
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ
अब तो अँगारों के लब चूम के सो जाएँगे
ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में
सोए कहाँ थे आँखों ने तकिए भिगोए थे