यारो नए मौसम ने ये एहसान किए हैं
अब याद मुझे दर्द पुराने नहीं आते
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मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ
यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं
जब सहर चुप हो हँसा लो हम को
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
नज़र से गुफ़्तुगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
चमक रही है परों में उड़ान की ख़ुशबू
अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
फूल बरसे कहीं शबनम कहीं गौहर बरसे
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है