ये एक पेड़ है आ इस से मिल के रो लें हम
यहाँ से तेरे मिरे रास्ते बदलते हैं
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ये शबनमी लहजा है आहिस्ता ग़ज़ल पढ़ना
मेरे सीने पर वो सर रक्खे हुए सोता रहा
एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला
फिर से ख़ुदा बनाएगा कोई नया जहाँ
कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
चमक रही है परों में उड़ान की ख़ुशबू
मिरी ज़िंदगी भी मिरी नहीं ये हज़ार ख़ानों में बट गई
जिस दिन से चला हूँ मिरी मंज़िल पे नज़र है
मंदिर गए मस्जिद गए पीरों फ़क़ीरों से मिले