पहले हम ने घर बना कर फ़ासले पैदा किए
फिर उठा दीं और दीवारें घरों के दरमियाँ
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
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Habib Jalib
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Jaun Eliya
Gulzar
Rahat Indori
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अजब सी आग थी जलता रहा बदन सारा
हम तेरे पास आ के परेशान हैं बहुत
शहर-ए-फ़स्ल-ए-गुल से चल कर पत्थरों के दरमियाँ
मिरे बदन में छुपी आग को हवा देगा
मैं जितनी देर तिरी याद में उदास रहा
तज़्किरे में तिरे इक नाम को यूँ जोड़ दिया
आगही कर्ब वफ़ा सब्र तमन्ना एहसास
अब के जुनूँ में लज़्ज़त-ए-आज़ार भी नहीं
चले भी आओ कि ये डूबता हुआ सूरज
लोगो हम छान चुके जा के समुंदर सारे