तज़्किरे में तिरे इक नाम को यूँ जोड़ दिया
दोस्तों ने मुझे शीशे की तरह तोड़ दिया
Allama Iqbal
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(792) Peoples Rate This
पहले हम ने घर बना कर फ़ासले पैदा किए
अजब सी आग थी जलता रहा बदन सारा
अब के जुनूँ में लज़्ज़त-ए-आज़ार भी नहीं
आगही कर्ब वफ़ा सब्र तमन्ना एहसास
मिरे बदन में छुपी आग को हवा देगा
हम तेरे पास आ के परेशान हैं बहुत
लोगो हम छान चुके जा के समुंदर सारे
शहर-ए-फ़स्ल-ए-गुल से चल कर पत्थरों के दरमियाँ
चले भी आओ कि ये डूबता हुआ सूरज
मैं जितनी देर तिरी याद में उदास रहा