ये मैं कहूँगा फ़लक पे जा कर ज़मीं से आया हूँ तंग आ कर
ये मैं कहूँगा फ़लक पे जा कर ज़मीं से आया हूँ तंग आ कर
जो ऐ मसीहा तू है मसीहा तो कुछ मिरे दर्द की दवा कर
तुम्हारे जल्वे ग़ज़ब के देखे तुम्हारे छींटे बला के पाए
लगा लगा दी बुझा बुझा कर बुझा बुझा दी लगा लगा कर
ज़िदें मोहब्बत से ऐसी आईं ख़याल रक्खा न अपने घर का
बुतों ने का'बे को मुफ़्त ढाया किसी के दिल को दुखा दुखा कर
वो शोख़ बे-ए'तिबार काफ़िर रहा न तन्हा गया न तन्हा
जो दर्द उट्ठा उठा उठा कर तो दिल को बैठा बिठा बिठा कर
ये ज़ोर हिरमान-ओ-यास का है असर कहाँ का मिरी फ़ुग़ाँ को
पटक पटक ख़ाक पर दिया है फ़लक से ऊँचा उठा उठा कर
गुदाज़ करते हैं मेरे दिल को वो यूँ बिठाते हैं अपना सिक्का
जली कटी हो रही है क्या क्या अदू से मुझ को सुना सुना कर
सुनी किसी ने सदा-ए-तूती न हालत-ए-अंदलीब देखी
जो कोर थी इस चमन में नर्गिस तो गुल भी ऐ हम-सफ़ीर था कर
कहीं न ज़ुल्फ़ों से खुल पड़ा हो मुझे है अंदेशा अपने दिल का
कि पुर्ज़े पुर्ज़े उड़ा रहा था अदू कोई शय दिखा दिखा कर
वो बुत कि दें उस को तो न गर दे तो लाख तूफ़ाँ उठा के धर दे
ज़बान फिर साफ़ क़त्अ कर दे जो मुँह से निकले ख़ुदा ख़ुदा कर
इलाही हंगाम-ए-आमद-आमद ये किस क़यामत-ख़िराम का है
खिसक चले सेहन-ए-बोस्ताँ से तदरौ-ओ-ताऊस दुम दबा कर
फ़लक हुआ मेहरबाँ फिरे दिन शब-ए-विसाल आ गई तो इस ने
बहार-ए-लुत्फ़-ओ-करम दिखा कर नक़ाब-ए-शर्म-ओ-हया उठा कर
कभी हँसाया कभी रुलाया कभी रुलाया कभी हँसाया
झिजक झिजक कर सिमट सिमट कर लिपट लिपट कर दबा दबा कर
'बयाँ' है वो बादशाह-ए-अस्रा कि जिस की दरगाह-ए-ख़ुसरवी में
दिया ज़मीन-ए-अदब को बोसा फ़लक ने गर्दन झुका झुका कर
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