देखने निकला हूँ दुनिया को मगर क्या देखूँ
जिस तरफ़ आँख उठाऊँ वही चेहरा देखूँ
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प्यार है वो
उन की गोद में सर रख कर जब आँसू आँसू रोया था
तुझ जैसा इक आँचल चाहूँ अपने जैसा दामन ढूँडूँ
उसे छत पर खड़े देखा था मैं ने
एक दुनिया ने तुझे देखा है लेकिन मैं ने
दुखती है रूह पाँव को लाचार देख कर
दायरा खींच के बैठा हूँ बड़ी मुद्दत से
जो दिल में उस को बसाए वो और कुछ न करे
हम से भली चाल चली चाँदनी
तुम तो कुछ ऐसे भूल गए हो जैसे कभी वाक़िफ़ ही नहीं थे
अब तक तो यही पता नहीं है