एक दुनिया ने तुझे देखा है लेकिन मैं ने
जैसे देखा है तुझे वैसे न देखा होता
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तुम तो कुछ ऐसे भूल गए हो जैसे कभी वाक़िफ़ ही नहीं थे
बदन ढाँपे हुए फिरता हूँ यानी
पड़ने लगे जो ज़ोर हवस का तो क्या निगाह
पतझड़ का मौसम था लेकिन शाख़ पे तन्हा फूल खिला था
अब तक तो यही पता नहीं है
अब के बसंत आई तो आँखें उजड़ गईं
हम से भली चाल चली चाँदनी
जिस्म में ख़्वाहिश न थी एहसास में काँटा न था
इतना अच्छा न अगर होता तो हम सा होता
कैसे कहें कि चार तरफ़ दायरा न था
उन की गोद में सर रख कर जब आँसू आँसू रोया था