अब के बसंत आई तो आँखें उजड़ गईं
सरसों के खेत में कोई पत्ता हरा न था
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कैसे कहें कि चार तरफ़ दायरा न था
प्यार है वो
ऐसा हुआ कि घर से न निकला तमाम दिन
चाँद को रेशमी बादल से उलझता देखूँ
अब तक तो यही पता नहीं है
दायरा खींच के बैठा हूँ बड़ी मुद्दत से
सभी इंसाँ फ़रिश्ते हो गए हैं
दुखती है रूह पाँव को लाचार देख कर
उन की गोद में सर रख कर जब आँसू आँसू रोया था
वो: एक
जो दिल में उस को बसाए वो और कुछ न करे
नाम उस का