अदीब-ओ-शायर-ओ-फ़नकार बोते हैं जो शजर
ये लोग फल कहाँ अपने शजर के देखते हैं
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1058) Peoples Rate This
एक शादी तो ठीक है लेकिन
लग गए हैं फ़ोन लगने में जो पच्चीस साल
स्टेज पर पड़ा था जो पर्दा वो उठ चुका
न मिरा मकाँ ही बदल गया न तिरा पता कोई और है
या रब मिरे नसीब में अक्ल-ए-हलाल हो
शदीद गरमी के मौसम में मुशाइरा
साहब ये चाहते हैं मैं हर हुक्म पर कहूँ
मर्दुम-गज़ीदा इंसान का इलाज
कराची की बस
शोर से बच्चों के घबराते हैं घर पर और हम
वस्ल की रात जो महबूब कहे गुड नाईट
वो शख़्स कभी जिस ने मिरा घर नहीं देखा