हाँ आप को देखा था मोहब्बत से हमीं ने
जी सारे ज़माने के गुनहगार हमीं थे
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तौबा की नाज़िशों पे सितम ढा के पी गया
बैठे बैठे उन की महफ़िल याद आ जाती है जब
पढ़ रही हैं रात की ख़ामोशियाँ अफ़्सून-ए-ख़्वाब
'एहसान' अपना कोई बुरे वक़्त का नहीं
'एहसान' ऐसा तल्ख़ जवाब-ए-वफ़ा मिला
ये उजालों के जज़ीरे ये सराबों के दयार
इस तरह आते हैं अंजाम-ए-मोहब्बत के ख़याल
जब रुख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा
शोरिश-ए-इश्क़ में है हुस्न बराबर का शरीक
रहे जो ज़िंदगी में ज़िंदगी का आसरा हो कर
रो रहा था गोद में अम्माँ की इक तिफ़्ल-ए-हसीं
रंग-ए-तहज़ीब-ओ-तमद्दुन के शनासा हम भी हैं