हवा के सय्याल बाज़ुओं पर घटा के शब-रंग कारवाँ हैं
नसीम-ए-मस्ताना रक़्स में है फ़ज़ा में नश्शा सा छा रहा है
ख़ुनुक तराई के संग पारे असर में डूबे हुए पड़े हैं
कि जैसे कोई हसीं नहा कर घनेरी ज़ुल्फ़ें सुखा रहा है
Anwar Masood
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Gulzar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(759) Peoples Rate This
रहता नहीं इंसान तो मिट जाता है ग़म भी
ब-जुज़ उस के 'एहसान' को क्या समझिए
रेल ने सीटी बजाई 'शोर' ओ 'दामन' चल दिए
हुस्न को दुनिया की आँखों से न देख
जीने के लिए जो मर रहे हैं
दोपहर होने को है सन्ना गया जंगल तमाम
'एहसान' अपना कोई बुरे वक़्त का नहीं
ये कौन हँस के सेहन-ए-चमन से गुज़र गया
ज़ब्त भी सब्र भी इम्कान में सब कुछ है मगर
कल रात कुछ अजीब समाँ ग़म-कदे में था
बना देंगी दुनिया को इक दिन शराबी
बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे