जब किसी की याद आ कर तिलमिला जाता है दिल
जगमगा उठती है कुछ इस शान से बज़्म-ए-दिमाग़
जैसे सावन की बरसती रात में इक नाज़नीं
सेहन में ज़ीने से उतरे हाथ में ले कर चराग़
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दोपहर मैदान गर्मी हब्स अब्र-ए-बे-मता
देहली का इक रईस ब-हंगाम-ए-जाँ-कनी
इश्क़ को तक़लीद से आज़ाद कर
बख़्श दी हाल-ए-ज़बूँ ने जल्वा-सामानी मुझे
शाम और रस्ते में रेवड़ के गुज़रने से ग़ुबार
नज़र फ़रेब-ए-क़ज़ा खा गई तो क्या होगा
मुफ़्लिसी और इस में घर पर हम-नशीनों का हुजूम
हवा के सय्याल बाज़ुओं पर घटा के शब-रंग कारवाँ हैं
किस किस की ज़बाँ रोकने जाऊँ तिरी ख़ातिर
हम हक़ीक़त हैं तो तस्लीम न करने का सबब
भूरे भूरे बादलों से आसमाँ लबरेज़ है
यूँ उस पे मिरी अर्ज़-ए-तमन्ना का असर था