जब कोई जुगनू चमकता है अँधेरी रात में
इस तरह ज़ुल्मत में लहराती है नूरानी लकीर
जैसे साहिल पर गरजते बादलों के साए में
जुम्बिश-ए-अमवाज से नादार मय-कश का ज़मीर
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दोपहर होने को है सन्ना गया जंगल तमाम
किसे ख़बर थी कि ये दौर-ए-ख़ुद-ग़रज़ इक दिन
इश्क़ की दुनिया में इक हंगामा बरपा कर दिया
ये कौन हँस के सेहन-ए-चमन से गुज़र गया
वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
ये उजालों के जज़ीरे ये सराबों के दयार
दिल की शगुफ़्तगी के साथ राहत-ए-मय-कदा गई
इश्क़ को तक़लीद से आज़ाद कर
सता लो मुझे ज़िंदगी में सता लो
ज़ब्त भी सब्र भी इम्कान में सब कुछ है मगर
हुस्न को दुनिया की आँखों से न देख
आज भड़की रग-ए-वहशत तिरे दीवानों की