रेल ने सीटी बजाई 'शोर' ओ 'दामन' चल दिए
छा गया ऐसा नशात-ए-अक़्ल पर रंज-ओ-मलाल
जैसे इक हस्सास को परदेस में सोने के वक़्त
देस की महबूब ओ ना-हमवार गलियों का ख़याल
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और कुछ देर सितारो ठहरो
'एहसान' अपना कोई बुरे वक़्त का नहीं
हौज़ में गिर पड़ा गुलाब का फूल
जब रुख़-ए-हुस्न से नक़ाब उठा
कुछ लोग जो सवार हैं काग़ज़ की नाव पर
दिल की रग़बत है जब आप ही की तरफ़
पढ़ रही हैं रात की ख़ामोशियाँ अफ़्सून-ए-ख़्वाब
आया नहीं है राह पे चर्ख़-ए-कुहन अभी
रो रहा था गोद में अम्माँ की इक तिफ़्ल-ए-हसीं
सता लो मुझे ज़िंदगी में सता लो
वफ़ा का अहद था दिल को सँभालने के लिए
हम-नशीं उफ़ इख़्तिताम-ए-बज़्म-ए-मय-नोशी न पूछ