आँख भर देख लो ये वीराना
आज कल में ये शहर होता है
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Parveen Shakir
Wasi Shah
Gulzar
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(729) Peoples Rate This
जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ
गर अपने आप में इंसान बढ़ता जा रहा है
उस को है इश्क़ बताना भी नहीं चाहता है
कैसी बला-ए-जाँ है ये मुझ को बदन किए हुए
मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं
ख़ुद से इंकार को हम-ज़ाद किया है मैं ने
रास्ते हम से राज़ कहने लगे
उम्र बे-वज्ह गुज़ारे भी नहीं जा सकते
पीला कुत्ता
ये सारे ख़ूबसूरत जिस्म अभी मर जाने वाले हैं
बुझ गए सारे चराग़-ए-जिस्म-ओ-जाँ तब दिल जला
मिरे सारे बदन पर दूरियों की ख़ाक बिखरी है