अब देखता हूँ मैं तो वो अस्बाब ही नहीं
लगता है रास्ते में कहीं खुल गया बदन
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वा'दा
इस तरह आता हूँ बाज़ारों के बीच
शुस्ता ज़बाँ शगुफ़्ता बयाँ होंठ गुल-फ़िशाँ
कभी ख़ुदा कभी इंसान रोक लेता है
उस जगह जा के वो बैठा है भरी महफ़िल में
तमाम शहर की ख़ातिर चमन से आते हैं
मैं अपने रू-ए-हक़ीक़त को खो नहीं सकता
साँसें ना-हमवार मिरी
औरों ने उस गली से क्या क्या न कुछ ख़रीदा
हमारी आँखों में बस गया है अजीब पंजाब आँसुओं का
रास्ते हम से राज़ कहने लगे
औरतें काम पे निकली थीं बदन घर रख कर