चाँद भी हैरान दरिया भी परेशानी में है
अक्स किस का है कि इतनी रौशनी पानी में है
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वस्ल की रात में हम रात में बह जाते हैं
सब लज़्ज़तें विसाल की बेकार करते हो
चाकरी में रह के इस दुनिया की मोहमल हो गए थे
ख़त बहुत उस के पढ़े हैं कभी देखा नहीं है
उस जगह जा के वो बैठा है भरी महफ़िल में
ख़ुद से इंकार को हम-ज़ाद किया है मैं ने
मिरी मोहब्बत में सारी दुनिया को इक खिलौना बना दिया है
आँख भर देख लो ये वीराना
तन्हाई के आब-ए-रवाँ के साहिल पर बैठा हूँ मैं
उस को है इश्क़ बताना भी नहीं चाहता है
बस एक लम्स कि जल जाएँ सब ख़स-ओ-ख़ाशाक
क़िस्सा-ए-आदम में एक और ही वहदत पैदा कर ली है