दुनिया से कहो जो उसे करना है वो कर ले
अब दिल में मिरे वो अलल-एलान रहेगा
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फिर सोच के ये सब्र किया अहल-ए-हवस ने
देखो अभी लहू की इक धार चल रही है
आँख भर देख लो ये वीराना
साँप
घर बनाने में तमाम अहल-ए-सफ़र लग गए हैं
हमें जब अपना तआरुफ़ कराना पड़ता है
औरतें काम पे निकली थीं बदन घर रख कर
बहुत सी आँखें लगीं हैं और एक ख़्वाब तय्यार हो रहा है
महफ़िल में अब के आओ तो ऐसी ख़ता न हो
हमेशा का ये मंज़र है कि सहरा जल रहा है
अभी नहीं कि अभी महज़ इस्तिआरा बना
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से