सर सलामत लिए लौट आए गली से उस की
यार ने हम को कोई ढंग की ख़िदमत नहीं दी
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मोहब्बत का सिला-कार-ए-मोहब्बत से नहीं मिलता
मैं तमाम गर्द-ओ-ग़ुबार हूँ मुझे मेरी सूरत-ए-हाल दे
हमेशा का ये मंज़र है कि सहरा जल रहा है
इक हवा सा मिरे सीने से मिरा यार गया
ख़ुदा ख़ामोश बंदे बोलते हैं
दिल ने इमदाद कभी हस्ब-ए-ज़रूरत नहीं दी
अगर मैं चीख़ूँ
मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं
किसी हालत में भी तन्हा नहीं होने देती
है शोर साहिलों पर सैलाब आ रहा है
अब दिल की तरफ़ दर्द की यलग़ार बहुत है
जिस को जैसा भी है दरकार उसे वैसा मिल जाए