जिस्म के अंदर जो सूरज तप रहा है
ख़ून बन जाए तो फिर ठंडा करेंगे
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1397) Peoples Rate This
थे उस के हाथ लहू में हमारे ग़र्क़ मगर
गो इस सफ़र में थक के बदन चूर हो गया
हर रोज़ दिखाई दें सब लोग वहीं लेकिन
रौशनी से किस तरह पर्दा करेंगे
कोई मौसम हो कुछ भी हो सफ़र करना ही पड़ता है
कोई ठहरता नहीं यूँ तो वक़्त के आगे
जाने क्या ऐसा उसे मुझ में नज़र आया था
था अबस ख़ौफ़ कि आसेब-ए-गुमाँ मैं ही था
मसअला ये है कि उस के दिल में घर कैसे करें
दिल की ये आग बुझा दी किस ने
तमाम फेंके गए पत्थरों पे भारी था
ये और बात कि वो तिश्ना-ए-जवाब रहा