हज़ारों साल की थी आग मुझ में
रगड़ने तक मैं इक पत्थर रहा था
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मैं कहाँ आया हूँ लाए हैं तिरी महफ़िल में
मा'सूमा
अच्छी-ख़ासी रुस्वाई का सबब होती है
बग़ैर नक़्शे के सारे मकान लगते हैं
उम्र भर एक सी उलझन तो नहीं बन सकते
आँख और नींद के रिश्ते मुझे वापस कर दे
ख़िज़ाँ में चीनी चाय की दावत
याद
कोई आँख चुपके चुपके मुझे यूँ निहारती है
ख़र्च जब हो गई जज़्बों की रक़म आप ही आप
हिन्दोस्तान छोड़ दो
दिया जला के कोई चाँद पर रखा होगा