इश्क़ किया तो अपनी ही नादानी थी
वर्ना दुनिया जान की दुश्मन कब होती है
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कैसे आता है दबे पाँव गुनाहों का ख़याल
मिरा रोता बच्चा बहलता था जिस से
अच्छी-ख़ासी रुस्वाई का सबब होती है
दिया जला के कोई चाँद पर रखा होगा
कॉपीराइट
लिहाफ़
जो मरा है हादसे में मिरा उस से क्या था रिश्ता
कोई आँख चुपके चुपके मुझे यूँ निहारती है
समुंदर सर पटक कर मर रहा था
उम्र भर एक सी उलझन तो नहीं बन सकते
हज़ारों साल की थी आग मुझ में
तुझ को मंज़ूर नहीं मुझ को है अब भी मंज़ूर