तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ
ऐसे पस-मंज़र में क्या रहना सर-ए-मंज़र तो आ
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Anwar Masood
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Rahat Indori
Parveen Shakir
Gulzar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(823) Peoples Rate This
वही रिवायत गज़ीदा-दानिश वही हिकायत किताब वाली
ये क्या बताएँ कि किस रहगुज़र की गर्द हुए
सुलगना अंदर अंदर मिस्रा-ए-तर सोचते रहना
किस तरह उम्र को जाते देखूँ
रूह और बदन दोनों दाग़ दाग़ हैं यारो
न दामनों में यहाँ ख़ाक-ए-रहगुज़र बाँधो
सवाल सख़्त था दरिया के पार उतर जाना
चंद साँसें हैं मिरा रख़्त-ए-सफ़र ही कितना
खुला न मुझ से तबीअत का था बहुत गहरा
लोग मुझ को मिरे आहंग से पहचान गए
ख़ाक-ए-'शिबली' से ख़मीर अपना भी उट्ठा है 'फ़ज़ा'
मुद्दतों के बाद फिर कुंज-ए-हिरा रौशन हुआ