एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे
दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने का
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गो बरसती नहीं सदा आँखें
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
राख को भी कुरेद कर देखो
मंज़र! नर्सिंग-होम
ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का
ज़िंदगी पर भी कोई ज़ोर नहीं
जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ
बीते रिश्ते तलाश करती है
ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैं
वक़्त-2
आँखों में जल रहा है प बुझता नहीं धुआँ
मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को