कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ
उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
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कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
शाम से आँख में नमी सी है
देखो आहिस्ता चलो
बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
तिनका तिनका काँटे तोड़े सारी रात कटाई की
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
बीते रिश्ते तलाश करती है
फ़ज़ा
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
देर से गूँजते हैं सन्नाटे
तुझ को देखा है जो दरिया ने इधर आते हुए