कोई ख़ामोश ज़ख़्म लगती है
ज़िंदगी एक नज़्म लगती है
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Rahat Indori
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Gulzar
Parveen Shakir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(4177) Peoples Rate This
ग़ालिब
गिरहें
चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
समय
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
आँखों के पोछने से लगा आग का पता
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं
नज़्म
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे
ज़िक्र होता है जहाँ भी मिरे अफ़्साने का
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था
दर्द हल्का है साँस भारी है