मैं चुप कराता हूँ हर शब उमडती बारिश को
मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है
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सहमा सहमा डरा सा रहता है
आदतन तुम ने कर दिए वादे
मकान
इमेजेज़
आप के बा'द हर घड़ी हम ने
ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा
तुम्हारे ख़्वाब से हर शब लिपट के सोते हैं
जब भी ये दिल उदास होता है
ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी थी
हम तो कितनों को मह-जबीं कहते
ख़ुद-कुशी
फ़ज़ा