फिर वहीं लौट के जाना होगा
यार ने कैसी रिहाई दी है
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एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है
आइना देख कर तसल्ली हुई
दस्तक
फूलों की तरह लब खोल कभी
पेंटिंग
आदत
आप ने औरों से कहा सब कुछ
ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह
सब्र हर बार इख़्तियार किया
चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
राख को भी कुरेद कर देखो
डाइरी