हम किसी दर पे न ठिटके न कहीं दस्तक दी
सैकड़ों दर थे मिरी जाँ तिरे दर से पहले
Parveen Shakir
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Gulzar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
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कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
एक लड़का
अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें
कल हम ने सपना देखा है
अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले
दिल इक कुटिया दश्त किनारे
ये बच्चा किस का बच्चा है
ये कौन आया
दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो
दरवाज़ा खुला रखना
ये सराए है
उस शाम वो रुख़्सत का समाँ याद रहेगा