बुझ गया दिल तो ख़राबी हुई है
फिर किसी शोला-जबीं से मिलिए
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लिखने को लिख रहे हैं ग़ज़ब की कहानियाँ
छलकती आए कि अपनी तलब से भी कम आए
कुछ तो तअल्लुक़ कुछ तो लगाओ
हुस्न बना जब बहती गंगा
अजीब बात है कीचड़ में लहलहाए कँवल
बड़े ग़ज़ब का है यारो बड़े अज़ाब का ज़ख़्म
राह-ए-तलब में कौन किसी का अपने भी बेगाने हैं
आज की रात कटेगी क्यूँ कर साज़ न जाम न तो मेहमान
कुछ भी तो अपने पास नहीं जुज़-मता-ए-दिल
दिल सा खिलौना हाथ आया है
बिल-आख़िर थक हार के यारो हम ने भी तस्लीम किया