चाँद का हुस्न भी ज़मीन से है
चाँद पर चाँदनी नहीं होती
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ज़मीन की कोख ही ज़ख़्मी नहीं अंधेरों से
लब-ओ-रुख़्सार ओ जबीं से मिलिए
हुस्न बना जब बहती गंगा
बड़े ग़ज़ब का है यारो बड़े अज़ाब का ज़ख़्म
लिखने को लिख रहे हैं ग़ज़ब की कहानियाँ
यूँही वाबस्तगी नहीं होती
कुछ तो तअल्लुक़ कुछ तो लगाओ
किसी की सदा
दिन के भूले को रात डसती है
राह-ए-तलब में कौन किसी का अपने भी बेगाने हैं
बुझ गया दिल तो ख़राबी हुई है
आज की रात कटेगी क्यूँ कर साज़ न जाम न तो मेहमान