वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का
उसी पे ख़त्म है तासीर बेवफ़ाई की
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प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
रास्ता भूल गया एक सितारा अपना
'अशहर' बहुत सी पत्तियाँ शाख़ों से छिन गईं
वैसे भी उस से कोई रब्त न रक्खा मैं ने
ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की
रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया
ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस को
वो किसी को याद कर के मुस्कुराया था उधर
न जाने कितने चराग़ों को मिल गई शोहरत
आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा