ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
आज फिर याद मोहब्बत की कहानी आई
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सभी अपने नज़र आते हैं ब-ज़ाहिर लेकिन
जो उस के होंटों की जुम्बिश में क़ैद था 'अशहर'
वैसे भी उस से कोई रब्त न रक्खा मैं ने
रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया
बदन में अव्वलीं एहसास है तकानों का
प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
सताया आज मुनासिब जगह पे बारिश ने
उर्दू
मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
ख़ुदा ने लाज रखी मेरी बे-नवाई की
तमाशाई बने रहिए तमाशा देखते रहिए