वैसे भी उस से कोई रब्त न रक्खा मैं ने
यूँ भी दुनिया में कशिश तेरी ब-निसबत कम थी
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'अशहर' बहुत सी पत्तियाँ शाख़ों से छिन गईं
तेरी बातों को छुपाना नहीं आता मुझ से
तमाशाई बने रहिए तमाशा देखते रहिए
आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
सभी अपने नज़र आते हैं ब-ज़ाहिर लेकिन
वो किसी को याद कर के मुस्कुराया था उधर
फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से
न जाने कितने चराग़ों को मिल गई शोहरत
सताया आज मुनासिब जगह पे बारिश ने
प्यास के बेदार होने का कोई रस्ता न था
मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल