'अशहर' बहुत सी पत्तियाँ शाख़ों से छिन गईं
तफ़्सीर क्या करें कि हवा तेज़ अब भी है
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Gulzar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1072) Peoples Rate This
मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस को
प्यास के बेदार होने का कोई रस्ता न था
किसी को खो के पा लिया किसी को पा के खो दिया
वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का
आरज़ू है सूरज को आइना दिखाने की
रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया
सभी अपने नज़र आते हैं ब-ज़ाहिर लेकिन
तेरे किरदार को इतना तो शरफ़ हासिल है
भीगी भीगी पलकों पर ये जो इक सितारा है
सुनो समुंदर की शोख़ लहरो हवाएँ ठहरी हैं तुम भी ठहरो
कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए