सुनो समुंदर की शोख़ लहरो हवाएँ ठहरी हैं तुम भी ठहरो
वो दूर साहिल पे एक बच्चा अभी घरौंदे बना रहा है
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भीगी भीगी पलकों पर ये जो इक सितारा है
उर्दू
सभी अपने नज़र आते हैं ब-ज़ाहिर लेकिन
तेरे किरदार को इतना तो शरफ़ हासिल है
जो उस के होंटों की जुम्बिश में क़ैद था 'अशहर'
रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया
कभी कसक जुदाई की कभी महक विसाल की
फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से
सिलसिला ख़त्म हुआ जलने जलाने वाला
वो भी कुछ भूला हुआ था मैं कुछ भटका हुआ
वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का
'अशहर' बहुत सी पत्तियाँ शाख़ों से छिन गईं