फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से
फिर मिरे दिल को धड़कने के बहाने आए
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कभी कसक जुदाई की कभी महक विसाल की
प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
तेरी बातों को छुपाना नहीं आता मुझ से
सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को
कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए
आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
जो उस के होंटों की जुम्बिश में क़ैद था 'अशहर'
न जाने कितने चराग़ों को मिल गई शोहरत
'अशहर' बहुत सी पत्तियाँ शाख़ों से छिन गईं
रास्ता भूल गया एक सितारा अपना
रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया