आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
आज फिर याद कोई चोट पुरानी आई
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प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
जो उस के होंटों की जुम्बिश में क़ैद था 'अशहर'
कभी कसक जुदाई की कभी महक विसाल की
वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का
उर्दू
वो किसी को याद कर के मुस्कुराया था उधर
तमाशाई बने रहिए तमाशा देखते रहिए
तेरे किरदार को इतना तो शरफ़ हासिल है
भीगी भीगी पलकों पर ये जो इक सितारा है
तेरी बातों को छुपाना नहीं आता मुझ से
ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई