आरज़ू है सूरज को आइना दिखाने की
रौशनी की सोहबत में एक दिन गुज़ारा है
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Wasi Shah
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1491) Peoples Rate This
मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से
कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए
प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
दयार-ए-दिल में नया नया सा चराग़ कोई जला रहा है
ये नहीं पहले तिरी याद से निस्बत कम थी
तेरी बातों को छुपाना नहीं आता मुझ से
ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस को
प्यास के बेदार होने का कोई रस्ता न था
सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को
तमाशाई बने रहिए तमाशा देखते रहिए
वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का