तेरी बातों को छुपाना नहीं आता मुझ से
तू ने ख़ुश्बू मिरे लहजे में बसा रक्खी है
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बदन में अव्वलीं एहसास है तकानों का
सभी अपने नज़र आते हैं ब-ज़ाहिर लेकिन
दयार-ए-दिल में नया नया सा चराग़ कोई जला रहा है
प्यास दरिया की निगाहों से छुपा रक्खी है
ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
भीगी भीगी पलकों पर ये जो इक सितारा है
वही तो मरकज़ी किरदार है कहानी का
सिलसिला ख़त्म हुआ जलने जलाने वाला
कभी कसक जुदाई की कभी महक विसाल की
फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से
वो भी कुछ भूला हुआ था मैं कुछ भटका हुआ
सुनो समुंदर की शोख़ लहरो हवाएँ ठहरी हैं तुम भी ठहरो