मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
मुद्दतों ब'अद हमें नींद सुहानी आई
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तुम्हारी ख़ुश्बू थी हम-सफ़र तो हमारा लहजा ही दूसरा था
उर्दू
बदन में अव्वलीं एहसास है तकानों का
भीगी भीगी पलकों पर ये जो इक सितारा है
सोचता हूँ तिरी तस्वीर दिखा दूँ उस को
सताया आज मुनासिब जगह पे बारिश ने
वैसे भी उस से कोई रब्त न रक्खा मैं ने
ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
ले गईं दूर बहुत दूर हवाएँ जिस को
किसी को खो के पा लिया किसी को पा के खो दिया
ये नहीं पहले तिरी याद से निस्बत कम थी