न जाने कितने चराग़ों को मिल गई शोहरत
इक आफ़्ताब के बे-वक़्त डूब जाने से
Anwar Masood
Wasi Shah
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
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वैसे भी उस से कोई रब्त न रक्खा मैं ने
प्यास के बेदार होने का कोई रस्ता न था
रात का पिछ्ला पहर कैसी निशानी दे गया
'अशहर' बहुत सी पत्तियाँ शाख़ों से छिन गईं
तमाशाई बने रहिए तमाशा देखते रहिए
आज फिर नींद को आँखों से बिछड़ते देखा
जो उस के होंटों की जुम्बिश में क़ैद था 'अशहर'
किसी को खो के पा लिया किसी को पा के खो दिया
सभी अपने नज़र आते हैं ब-ज़ाहिर लेकिन
ठहरी ठहरी सी तबीअत में रवानी आई
वो भी कुछ भूला हुआ था मैं कुछ भटका हुआ
कभी कसक जुदाई की कभी महक विसाल की