जो तसव्वुर से मावरा न हुआ
वो तो बंदा हुआ ख़ुदा न हुआ
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असीरों में भी हो जाएँ जो कुछ आशुफ़्ता-सर पैदा
हुस्न-ए-फ़ितरत की आबरू मुझ से
ख़ाकिस्तर-ए-दिल में तो न था एक शरर भी
सदा फ़रियाद की आए कहीं से
न रहा ज़ौक़-ए-रंग-ओ-बू मुझ को
ये इत्र बे-ज़ियाँ नहीं नसीम-ए-नौ-बहार की
उफ़ क्या मज़ा मिला सितम-ए-रोज़गार में
कुछ ऐसा है फ़रेब-ए-नर्गिस-ए-मस्ताना बरसों से
वो शबनम का सुकूँ हो या कि परवाने की बेताबी