जो साहिब-ए-मक्रमत थे और दानिश-मंद
तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
अल-हक़ कि नहीं है ग़ैर हरगिज़ मौजूद
ढूँडा करे कोई लाख क्या मिलता है
तारीक है रात और दुनिया ज़ख़्ख़ार
ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ-सुरूर
तौहीद की राह में है वीराना-ए-सख़्त
ऐ बे-ख़बरी की नींद सोने वालो
रात
शैतान करता है कब किसी को गुमराह
अफ़्सुर्दगी और गर्म-जोशी भी ग़लत
बे-कार न वक़्त को गुज़ारो यारो