हमारी गाय
ईद-ए-रमज़ाँ है आज बा-ऐश-ओ-सुरूर
बदला नहीं कोई भेस नाचारी से
बरसात
थोड़ा थोड़ा मिल कर बहुत हो जाता है
दाल की फ़रियाद
गर रूह न पाबंद-ए-तअ'य्युन होती
इख़्फ़ा के लिए है इस क़दर जोश-ओ-ख़रोश
या-रब कोई नक़्श-ए-मुद्दआ भी न रहे
छोटे काम का बड़ा नतीजा
गर्मी का मौसम
दर-अस्ल कहाँ है इख़्तिलाफ़-ए-अहवाल