बुरहान-ओ-दलील ऐन गुमराही है
नफ़ी-ओ-इस्बात महज़ जाँ का ही है
इस रह में इबारत-ओ-इशारत है गुम
याँ तर्क-ए-ख़ुदी उसूल-ए-आगाही है
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ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर
क़ल्लाश है क़ौम तो पढ़ेगी क्यूँकर
करता हूँ सदा मैं अपनी शानें तब्दील
या-रब कोई नक़्श-ए-मुद्दआ भी न रहे
एक वक़्त में एक काम
हमारी गाय
है इश्क़ से हुस्न की सफ़ाई ज़ाहिर
नसीहत
ख़ाक नमनाक और ताबिंदा नुजूम
है शुक्र दुरुस्त और शिकायत ज़ेबा
पानी में है आग का लगाना दुश्वार